जेब में पड़ी चुइंगम से आया गजब आइडिया…और फिर शुरू हुई कामयाबी की कहानी
बिजनस डेस्क। दुनिया के कई शहर बायोमेडिकल और सामान्य कचरे के प्रबंधन की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका एक अहम समाधान रीसाइकलिंग है। लेकिन उसे किस तरह तात्कालिक स्थितियों में भी अमल में लाया जाए और लंबे समय तक उपयोग के लायक बनाया जाए। इसका एक आदर्श उदाहरण पेश कर रहे हैं सोशल आन्ट्रप्रन्योर और इनोवेटर डॉ. बिनिश देसाई, अपनी कंपनी इको इलेक्टिक के माध्यम से। हाल ही में उनकी कंपनी पीपीई किट्स और मास्क से इको फ्रेंडली ईंटे बनाकर फिर से चर्चा में आई। सिर्फ 16 साल की उम्र में उन्होंने एक वेस्ट मैनेजमेंट लैब की शुरुआत की थी और आज 28 साल की उम्र में उनकी पहचान भारत के रीसाइकलमैन के तौर पर है। उन्हें फोर्ब्स पत्रिका ने 2018 की 30 अंडर 30 की लिस्ट में भी शामिल किया था। वह ‘पद्मश्री’ के लिए नामित हुए थे और कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड भी जीत चुके हैं।
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कैसे हुई शुरुआत
एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में डॉ. बिनिश ने बताया कि 11 साल की उम्र में एक दिन क्लास में उन्होंने चुइंगम को कागज में लपेटकर जेब में रख लिया और भूल गए। दो-एक दिन के बाद उन्होंने देखा कि वह एकदम पत्थर जैसा हो गया है। इससे उन्हें एडवांस ब्रिक (ईंटे) 1.0 बनाने का आइडिया आया। इसी पर काम करते हुए उन्होंने 2010 में इको इलेक्टिक टेक्नोलॉजीज की शुरुआत की। उन्होंने पी ब्लॉक ईंटे बनानी शुरू की, जिसमें पेपर मिलों के वेस्ट का इस्तेमाल किया। बीते साल उनकी कंपनी ने 2.0 ईटों का निर्माण भी शुरू किया है, जो गुणवत्ता में अधिक उन्नत तो हैं ही, साथ ही उसमें बेकार कागज और बाइंडर पदार्थों के साथ उपयोग की हुई पीपीई यूनिट और मास्क भी रीसाइकल हो रहे हैं। सभी चीजों को कई राउंड सैनिटाइज भी किया जाता है। उनकी कंपनी कई स्तर पर उत्पाद व सामाजिक उद्यमिता से जुड़ी है और उनके बनाए उत्पादों को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है।
ऐसे मिली प्रेरणा
गुजरात के रहने वाले बिनिश देसाई का मानना है कि इस दुनिया में कुछ भी अनुपयोगी नहीं है। उनके काम करने के तरीके में हमेशा चार चरण होते हैं- निरीक्षण, असफलता, उसके सबक और समाधान। शुरुआत में उन्हें परिवार से ज्यादा सपोर्ट नहीं मिला, तो अपनी पॉकेट मनी से फर्म की शुरुआत की। उन्होंने एन्वायर्नमेंटल इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री ली और एन्वायर्नमेंटल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी में ऑनरेरी पीएचडी की। शोध कायोंर् के लिए सरकारी अनुदानों का सहारा लिया और उसके बाद तो क्लाइंट्स और परिवार से भी उन्हें सहयोग मिला। अब तक लगभग 104 तरह के इंडस्ट्रियल वेस्ट की पहचान कर और उनकी रीसाइक्लिंग करके वह 193 से भी ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल सस्ते उत्पादों का निर्माण कर चुके हैं। वह सरकार के स्वच्छता अभियान का हिस्सा रहे हैं। उनकी ईंटों से भारत के ग्रामीण इलाकों में 150 से भी ज्यादा निर्माण हुए हैं और वह 2003 मीट्रिक टन से ज्यादा कचरा रीसाइकल कर चुके हैं। आगे वह थ्रीडी प्रिंटिंग से सस्ते घर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
गुरु मंत्र
मैं भारत को जीरो वेस्ट तकनीक के विकल्प देने वाले अगुवा देश की तरह देखता हूं। …रीसाइक्लिंग और री-यूज हमारी जीवनशैली में हैं। हमें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।