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तेज टीकाकरण के बावजूद कोरोना निकाल रहा यूरोप का दम…लेकिन जानिए विशेषज्ञों से कि क्यों भारत में हो रहे केसेस कम

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भारत में कोविड प्रोटोकॉल का पालन, टीकाकरण, मास्क व सेनीटाइज़र का नियमित उपयोग, सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे

नई दिल्ली (ए)। यूरोप में कोरोना का कहर एक बार फिर बढ़ रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि सबसे कम टीकाकरण वाले देशों में ही नहीं, बल्कि उन मुल्कों में भी नए मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है, जहां बड़ी आबादी को दोनों खुराक हासिल हो चुकी है। विशेषज्ञ कोविड प्रोटोकॉल की अनदेखी और वैक्सीन से विकसित प्रतिरोधक क्षमता में आई कमी को इसकी मुख्य वजह मान रहे हैं।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर फ्रांकोइस बैलुक्स ने कहा, यूरोप महामारी को लेकर बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रहा है। ब्रिटेन और रूस जैसे देशों में बीते एक हफ्ते से रोजाना औसतन 30 से 40 हजार मामले सामने आ रहे हैं। वहीं, जर्मनी में तो बीते गुरुवार 50 हजार से ज्यादा नए मामले दर्ज किए गए, जबकि सप्ताह के शुरुआती दो दिनों में यह आंकड़ा 30 हजार से काफी नीचे था। खास बात यह है कि ब्रिटेन और जर्मनी में दो-तिहाई से ज्यादा बाशिंदों को कोविड टीके की दोनों खुराक हासिल हो चुकी है, जबकि रूस में पूर्ण टीकाकरण वाली आबादी का आंकड़ा 35 फीसदी के करीब है। ऐसे में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की अनदेखी के अलावा टीके से विकसित प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर पड़ना नए मामलों में वृद्धि की मुख्य वजह हो सकता है।

रीडिंग यूनिवर्सिटी की डॉ. सिमोन क्लार्क सर्दियों की दस्तक को भी इसके लिए जिम्मेदार मानती हैं। उनके मुताबिक सर्दियों में लोग घरों से बाहर कम निकलते हैं। बंद जगहों में मिलना-जुलना भी बढ़ जाता है। इससे वायरस के प्रसार का जोखिम बढ़ना लाजिमी है, फिर चाहे व्यक्ति को टीके की दोनों खुराक ही क्यों न हासिल हो चुकी हो। क्लार्क ने याद दिलाया कि कोरोना टीके वायरस से पूर्ण सुरक्षा की गारंटी नहीं देते। इनका मुख्य काम संक्रमण को गंभीर रूप धारण करने से रोकना और मौत की आशंका में कमी लाना है। ऐसे में कम टीकाकरण वाले देशों को सर्दियों में महामारी की ज्यादा चुनौती झेलनी पड़ सकती है।

‘बूस्टर डोज’ देने का दबाव बढ़ा


ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यूरोपीय देशों में कोरोना के नए मामलों में लगातार जारी इजाफे को देखते हुए ‘बूस्टर डोज’ लगाने की प्रक्रिया में तेजी लाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, कोरोना संक्रमितों की संख्या में वृद्धि याद दिलाती है कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। सार्स-कोव-2 वायरस के प्रसार पर लगाम लगाने के लिए ‘बूस्टर डोज’ देना समय की मांग बन गया है। अगर हमने तीसरी खुराक लगाने में और देरी की तो महामारी फिर विकराल रूप अख्तियार कर लेगी।

तीसरी खुराक का असर समझ रहे विशेषज्ञ

जॉनसन सरकार ब्रिटेन में ‘बूस्टर डोज’ हासिल करने वाले बुजुर्गों और बीमारों पर करीबी नजर रख रही है। शुरुआती परीक्षण में इन लोगों के खून में कोविड रोधी एंटीबॉडी के स्तर में एक बार फिर उछाल दर्ज किया गया है। हालांकि, उनके बीच संक्रमण के मामलों में गिरावट की वजह ‘बूस्टर डोज’ से पनपी अतिरिक्त सुरक्षा है, यह कहना फिलहाल जल्दबाजी होगा। जानकारों के मुताबिक ब्रिटेन के बुजुर्गों और बीमारों में वायरस के प्रसार में कमी का कारण स्कूलों की छुट्टी भी हो सकती है।

प्रतिबंधों का दौर लौटा

नीदरलैंड : तीन हफ्ते के आंशिक लॉकडाउन की घोषणा, सभी बार, रेस्तरां, जरूरी सामान की दुकानें रात आठ बजे, जबकि गैरजरूरी वस्तुओं की बिक्री करने वाली दुकानें शाम छह बजे के बाद नहीं खुल सकेंगी, घरों में चार से ज्यादा लोगों के जुटने पर पाबंदी।


ऑस्ट्रिया : सोमवार से ऊपरी ऑस्ट्रिया और सैल्जबर्ग में टीका नहीं लगवाने वाले लोगों को सिर्फ राशन की खरीदारी या चिकित्सकीय कारणों से घरों से बाहर निकलने की इजाजत होगी।

फ्रांस, जर्मनी : पांचवीं लहर से जूझ रहे फ्रांस में बुजुर्गों को ‘बूस्टर डोज’ का सर्टिफिकेट दिखाने के बाद ही सार्वजनिक जगहों में प्रवेश मिलेगा, जर्मनी ने सार्वजनिक आयोजनों से बचने की सलाह दी।

भारत में इसलिए धीमी गति से बढ़ रहे केस


यूरोप के मुकाबले भारत में कोरोना के नए मामलों में धीमी गति से वृद्धि हो रही है। इसकी बड़ी वजह दूसरी लहर में संक्रमण का काफी अधिक फैलना है। एम्स और सफदरजंग अस्पताल के विशेषज्ञों ने यह बात कही। एम्स कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने बताया कि दूसरी लहर में बड़ी आबादी के वायरस के संपर्क में आने से उनके शरीर में एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है। नेचुरल इंफेक्शन (स्वाभाविक संक्रमण) लोगों को वायरस से सुरक्षा उपलब्ध करा रहा है। सफदरजंग अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. जुगल किशोर भी उनकी बात से इत्तफाक रखते हैं। वह कहते हैं, अकेले टीकाकरण ही संक्रमण के प्रसार में कमी का सबब नहीं है। दूसरी लहर में वायरस से हुआ सामना इसके खिलाफ सुरक्षा कवच विकसित करने में मददगार साबित हुआ है।

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