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तीसरी अटल पुण्यतिथि पर विशेष

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”अटल” था पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व

भिलाई। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के फाउंडर मेंबर के साथ एक शानदार कवि भी थे और उनकी कई कविताएं मशहूर हुईं। वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे। आज भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की तीसरी पुण्यतिथि है। उनका जन्म ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 में हुआ था। इस खास मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी की 2 लोकप्रिय कविताएँ उन्हें श्रद्धांजलि की रूप में समर्पित की जा रही हैं। 

2 चुनिंदा मशहूर कविताएं

1. कदम मिलाकर चलना होगा….

बाधाएं आती हैं आएं

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते,

आग लगाकर जलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

हास्य-रूदन में, तूफानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,

पावस बनकर ढलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,

प्रखर प्यार से वंचित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुबन,

परहित अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,

जलना होगा, गलना होगा.

क़दम मिलाकर चलना होगा.

2. मस्तक नहीं झुकने दूंगा….

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते

पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।

अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता

त्याग, तेज, तप, बल से ‍रक्षित यह स्वतंत्रता

प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता। 

इसे मिटाने की साजिश करने वालों से

कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है

औरों के घर आग लगाने का जो सपना

वह अपने ही घर में सदा खरा होता है।

अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो

अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ

ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो

आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ।

पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है

तुम्हें मुफ्‍त में मिली न कीमत गई चुकाई

अंगरेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं

मां को खंडित करते तुमको लाज न आई।

अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को

दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो

दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली

बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो।

धमकी, जेहाद के नारों से, हथियारों से

कश्मीर कभी हथिया लोगे, यह मत समझो

हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से

भारत का भाल झुका लोगे, यह मत समझो।

जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार

अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष

स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे

अगणित जीवन, यौवन अशेष।

अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध

कश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते

पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।

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