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दिव्यांगता सर्टिफिकेट बनने से अब तेजाब पीड़ित और बौनों को भी शासकीय योजनाओं का लाभ लेने का रास्ता खुला

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  • पहले केवल सात बीमारियों से पीड़ित ही दिव्यांगजनों की श्रेणी में आते थे, अब 21 बीमारियां शामिल होने से बड़ी संख्या में पीड़ितों को मिलेगा लाभ
  • शिविरों में 4 तेजाब पीड़ित और 42 बौने कद के दिव्यांगजनों का किया गया चिन्हांकन

दुर्ग। शासन की मंशा के अनुरूप जिला प्रशासन द्वारा दिव्यांग जनों की बेहतरी के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। बड़ी संख्या में पात्र दिव्यांग जनों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके, इसके लिए समाज कल्याण विभाग दिव्यांग जनों को लगातार चिन्हित करने का प्रयास कर रहा है। समाज कल्याण विभाग के श्री डोनर सिंह ठाकुर ने बताया कि शासन ने दिव्यांग जनों की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में संशोधन किया है, जिससे दिव्यांग जनों की श्रेणी में बदलाव आया है। पहले 7 बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति ही दिव्यांग जनों की श्रेणी में आते थे परंतु वर्तमान में इनकी कुल 21 श्रेणियां है।  इस श्रेणी में सेरेब्रेल पाल्सी, हीमोफिलिया, कुष्ट रोग, अस्थि बाधित, मल्टीपल स्कलेरोसिस, मांसपेसी दुर्विकास, पार्किसंस रोग, सिकल सेल, स्पेसिफिक लर्निंग, थैलेसिमिया  आदि शामिल हैं।

ऑटिज्म, तेजाब पीड़ित, बौनौ  और मूक निशक्तजन का किया जा रहा है चिन्हांकन- जिले में ऑटिज्म जो कि एक प्रकार की न्यूरोलॉजिकल व डेवलपमेंट डिसेबिलिटी है जैसे दिव्यांग जनों का चिन्हांकन भी किया गया है। ऑटिज्म से ग्रसित कुल 34 लोगों की पहचान कर उन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है। पहले तेजाब हमले से पीड़ितों और बौनों को दिव्यांगता की श्रेणी में नहीं रखा गया था परंतु वर्तमान में संशोधन के बाद यह भी दिव्यांग जनों की श्रेणी में आते हैं। जिले में 4 तेजाब पीड़ितों और 34 बौनौं का चिन्हांकन भी विभाग के द्वारा किया गया है  और उन्हें आवश्यकता अनुसार संसाधन मुहैया कराए जा रहे हैं। 49 मूक निशक्तजन की पहचान भी की गई है ,जिसके लिए प्रशासन स्पीच थेरेपी  जैसे कार्यक्रम चला रहा है।

कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने दिव्यांग जनों  के सशक्तिकरण से जुड़ी  योजनाओं एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सभी संबंधित अधिकारियों को अलर्ट रहने के निर्देश दिए हैं।  ज्यादा से ज्यादा दिव्यांगजन, दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकें और सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें, इसे ही प्राथमिकता की श्रेणी में रखने के लिए कहा गया है। शहरी एवं ग्रामीण दोनों अंचलों में प्रचार-प्रसार के माध्यम से निरंतर कैपों का आयोजन किया जा रहा है और शहर में पार्षद व गांव में ग्राम प्रधान की मदद लेकर पात्र लोगों का चिन्हांकन किया जा रहा है।

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